छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों पर छल: 27% वेतन कटौती का ज़ख्म और बढ़ता आक्रोश

रायपुर, छत्तीसगढ़: क्या यही है कर्मचारियों का सम्मान? क्या सरकार की योजनाओं को ज़मीन पर उतारने वाले कर्मचारियों का हक़ मारना सही है? छत्तीसगढ़ की मुख्यमंत्री पंचायत सशक्तिकरण योजना (MMPSY) में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के साथ यही हो रहा है। अचानक उनके वेतन में 27% की कटौती कर दी गई है, जिससे उनका पेट ही नहीं, बल्कि सम्मान भी कट गया है।
ये कोई मामूली कटौती नहीं, बल्कि उन कर्मचारियों के साथ धोखा है जिन्होंने पिछले साल बड़ी मुश्किल से 27% वेतन वृद्धि हासिल की थी। याद है? जब बाकी विभागों को आसानी से वृद्धि मिल गई थी, तब इन कर्मचारियों को अपने हक़ के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी थी। और आज? आज तो वेतन बढ़ने की जगह, सीधे 27% काट लिया गया है! यह तो जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
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पेट पर लात और उम्मीदों पर पानी
सोचिए, एक तरफ़ जहाँ महंगाई का राक्षस हर दिन अपना मुँह फाड़ रहा है, वहीं इन कर्मचारियों की कमाई घटाई जा रही है। पिछले 6 महीने से इनका वेतन रुका हुआ है। घर का किराया, बच्चों की फ़ीस, राशन का बिल… सब कुछ कैसे चलेगा? अधिकारी तो अपने एयर-कंडीशनर ऑफ़िस में बैठकर फ़ाइलें साइन कर रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर काम करने वाले इन कर्मचारियों की आर्थिक तंगी की सुध लेने वाला कोई नहीं।
इनकी ज़िंदगी एक ऐसी नाव की तरह हो गई है जिसका नाविक तो है, लेकिन पतवार खो गई है। ऊपर से काम का दबाव इतना है कि दिन-रात एक करना पड़ता है, लेकिन जब बात वेतन की आती है तो सब चुप हो जाते हैं। कहाँ गया वो EPF जिसकी कटौती होनी चाहिए? सरकार की लापरवाही से ये कर्मचारी भविष्य के लिए भी नुकसान उठा रहे हैं।
ज्ञापन, गुहार और खाली हाथ
मुख्यमंत्री से लेकर पंचायत विभाग के अधिकारियों तक, हर दरवाज़े पर गुहार लगाई जा चुकी है, लेकिन सब बेकार। ज्ञापन दिए गए, मिन्नतें की गईं, पर नतीजा सिफ़र रहा। ऐसा लगता है जैसे इन कर्मचारियों की आवाज़ हवा में खो गई है।
क्या सरकार को इन कर्मचारियों की मेहनत नहीं दिखती? क्या इनका योगदान इतना कम है कि इनके साथ ऐसा अन्याय हो? यह सिर्फ़ वेतन का मामला नहीं है, यह हज़ारों परिवारों के भविष्य का सवाल है। सरकार को तुरंत जागना चाहिए और इन कर्मचारियों का हक़ उन्हें वापस देना चाहिए, वरना यह आक्रोश एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है।